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Friday 7 June 2013

कभी ओस बनके ढलकी कभी आंसुओ की निशानी

























"कभी ओस बनके ढलकी कभी आंसुओ की निशानी ,
कविता नहीं जज्बात है मेरे बस इतनी सी मेरी कहानी "

जिंदगी का हर दिन ईश्‍वर की डायरी का एक पन्ना है 

तरह तरह के रंग बिखरते है इसपे कभी लाल, पीले, हरे तो कभी काले सफेद ...............
और हर रंग से बन जाती है कविता . कभी खुशियो से झिलमिलाती है 
कविता तो कभी उमंगो से लहलहाती है 
तो कभी उदासी और खालीपन के सारे किस्से बयाँ कर देती है कविता ..........
हाँ कविता मेरे जज्बात और एहसास की कहानी है 
तो मेरी जिंदगी के हर रंग से रुबरू होने के लिये पढ़ लीजिये
" नीतीश श्रीवास्तव " की " जीवन की कुछ अनकही यादें " " धुंधली यादें "
जो हमे याद तो आती है मगर हम किसी से कह नहीं पाते उसे समझा नहीं पाते 
और मन ही मन मे उलझानो के तार बुनते रहते है ...................

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