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Tuesday 23 July 2013

काफिरों की टोली लेकर चल दिए ह्म















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
काफिरों की टोली लेकर चल दिए ह्म,
हर गमको भुलाने हर खुसि को अपनाने
मंज़िल मिली जिसे जिस जहाँ,
मोड़ कर रुख वो चल दिए
भूल गए थे मंज़िल तेय करने,
अकेले ह्म फकिर रेह गए
छूटा जो साथ सबका दिखा आगे अंधियरा
मूड कर देखा तो सब रास्ते ही बदल गए
अब इस अंधियरे को तेय करने,
अकेले हम फकिर राह गए
गिरते उठते तेय करते हैं ये फासले,
ताकी जो मंज़िल मिली तो गर्व से लौट पाएँ,
अगर नहीं मिली तो कमसे कम लोगों के यादों में ही राह जाएँ............
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

शहर सोया रहता है














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
शहर सोया रहता है
हम किस शहर में रहते है ?
यह सवाल ही गलत है,
सवाल यह होना चाहिये कि हम कैसे शहर में रहते है ?
आज हमारे शहर की पहचान क्या है ?
यही कि शोर इस कदर बढ गया है,
कि सन्नाटे रात को भी नहीं आते,
या यह कि शहर इस कदर जंगल हुआ,
कि अब इनमे आदमखोर नहीं आते,
क्या इसी शहर पर हम इतराते है ?
मैं अपने खयालात में डूबा था,
कि शहर को सामने से गुजरता देखा,
मैने शहर से पूछा,
कल रात फुटपाथ पर पडा बच्चा भूख से रोता रहा,
और तू घोडा बेचकर सोता रहा,
शहर मुझे घूरने लगा,
मैनें अखबार उसके आगे बढा दिया,
शहर ने उडती नजरो से वह खबर पढी,
शहर लापरवाही से बोला,
यार दिन भर का थका था बिस्तर पर गिरा तो फिर कुछ नहीं पता,
तू यही समझ कि जैसे मर गया था,
अगर मुझे नीद से जगाना ही था,
तो उस भूखे बच्चे को चीखना चिल्लाना था ना,
शहर कि सफाई सुन मैं सोच मे पड गया,
मै कुछ और पूछता,
इससे पहले शहर चलने को हुआ,
उसके पास इतना समय कहाँ वह नहीं रूका,
जाते हुये शहर को मैने जोर से कहा,
तू संञाशून्य हो चुका है,
मैं समझ गया तुझे सिसकियो की जगह शोर चाहिये,
कह नहीं सकता कि शहर मेरी बात सुन पाया या नहीं,
क्योकि मेरे देखते देखते वह भागने लगा था........................

::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

रास्ते मे ये मोड पडता क्यो.........................
















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
रास्ते मे ये मोड पडता क्यो,
मिलना होता तो वो बिछडता क्यो,
रात शक्की मिजाज थी वरना,
चाँदनी का नगर उजडता क्यो,
मिलना होता तो वो बिछडता क्यो,
दोस्ती टूटने का रंज ना कर,
जड जो होती तो पेड उखडता क्यो,
मिलना होता तो वो बिछडता क्यो,
था वो पत्थर हवा से झुक ना सका,
फूल होता तो जिद पे अडता क्यो,
मिलना होता तो वो बिछडता क्यो,
आबरू का सवाल था वरना,
एक तिनका हवा से लडता क्यो,
मिलना होता तो वो बिछडता क्यो............
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

Sunday 14 July 2013

तुने जो ना कहा,














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
तुने जो ना कहा,
मै वो सुनता रहा,
खाम खा बेवजह,
खवाब बुनता रहा,
जाने किसकी हमे लग गयी है नजर,
इस शहर मे ना अपना ठिकाना रहा,
पूरी चाहत से मै अपनी चलता रहा,
खाम खा बेवजह
ख्वाब बुनता रहा,
दर्द पहले से है ज्यादा,
खुद से फिर ये किया वादा,
खामोश नजरे रहे बेजुबान,
अब ना फिर ऐसी बाते है,
बोलो तो लब थरथराते है,
राज ये दिल का ना हो ब्यान,
हो गया के असर कोई हमपे नहीं,
हम सफर में तो है हम सफर है नहीं,
दूर जाता रहा पास आता रहा,
खाम खा बेवजह ख्वाब बुनता रहा,
आया वो फिर नजर ऐसे,
बात छिडने लगी फिर से,
आखों में चुभता कल का घुआँ,
हाल तेरा ना हमसा है,
इस खुशी में क्यो गम सा है,
बसने लगा क्यो फिर वो जहान,
वो जहान दूर जिससे गये थे निकल,
फिर से आखों में करती है जैसे पहल,
लमहा बिता हुआ दिल दुखाता रहा,
बुझ गयी आग थी दाग जलता रहा,
खाम खा बेवजह ख्वाब बुनता रहा....

::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

एक बार की बात है















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
एक बार की बात है
जब मैं स्कूल जाता था,
लेट उठो जिस दिन,
उस दिन पापा से डाँट खाता था,
नींद मे करता हुआ ब्रश, 
टायलेट मे घुस जाता था,
ना जाने कैसे दिन थे वो,
टायलेट मे ही सो जाता था,
एक बार की बात है ,
जब मैं स्कूल जाता था,
स्कूल मे ईन्टी करते ही,
ना जाने कैसा खौफ सताता था,
कब होगी छुटटी,
बस यही सब दिल मे आता था,
जैसे जैसे बडे हुऐ,
अब स्कूल मे दिल लग जाता था,
हर सुन्दर लडकी पर,
ना जाने क्यो क्रश हो जाता था,
एक बार की बात है,
जब मै स्कूल जाता था,
वो यारो के संग मस्ती,
वो लडकियाँ थी जब हसती,
कैन्टीन मे यूही,
लन्च ब्रेक निकल जाता था,
अब ना हम थे नादान,
क्योकि बोडॅ के थे एक्जाम,
हमसे कोई पुछो,
वो प्रेशर कैसे झेला जाता था,
एक बार की बात है,
जब मै स्कूल जाता था,
स्कूल का वो आखरी दिन,
और शर्टे पे सिगनेचर किया जाता था,
तब ना थे हम दोस्तो के बिन,
जब मै स्कूल लेके जाता था,
एक बार की बात है,
जब मै स्कूल जाता था.......

::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

पहले से अब वो दिन है,

















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
पहले से अब वो दिन है,
ना पहली सी रात है,
शायद हमारे बीच कहीं कोई बात है,
क्या बात है,
जो अब तू हमे देखता नहीं,
किस हाल मे है कैसे है,
कुछ पूछता नहीं,
लगता है कोई और तेरे आस पास है,
शायद हमारे बीच कहीं कोई बात है,
जाने कहाँ से राह में ये मोड आ गया,
सीने में दबे पाव कोई और आ गया,
जबके हर एक कदम पे तूही मेरे साथ है,
शायद हमारे बीच कहीं कोई बात है.........

::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

Saturday 13 July 2013

दिन भी क्या दिन आया,

@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
दिन भी क्या दिन आया,
कुछ खुशियाँ तो कुछ दुःख लाया,
पाने को तो सबने पाया,
खोने का दुःख बस मेने पाया । 
दिखा वो अजीब सा एक साया,
जिसके पीछा किया पर
कुछ न पाया,
अपने खाली हाथो को देख
मैं यूँ फर्माया
पाने को तो सबने पाया,
खोने का दुःख बस मेने पाया । 
उस दिन दिल मैं
उदासी का ही रहा मौसम छाया, 
आने की कोशिश की बाहर पर
खुद को अपना ही गवाह न पाया,
जिसे देख मैं था
रोया और बिखलाया,
पाने को तो सबने पाया,
खोने का दुःख बस मेने पाया । 
अगर वो पल हो जाता मेरा,
ख़ुशी-ख़ुशी सबको बताता,
अपना पल उसको समझकर खूब हर्षाता,
सोचता
पाने को तो सबने पाया,
खोने का दुःख बस मेने पाया ......................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

Friday 5 July 2013

मै जिन्दा भी नही

















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
मै जिन्दा भी नही 
बहुत दूर तक मै देखता ही नही हू , 
और पास कुछ नजर आत भी नही 
रह रह के वहम हो उठता है, 
कही चारो तरफ अ`धेरा तो नही   
उनको सोचना छोड दिया आजकल,
और गैरो को याद करके फायदा भी कया 
रह-रह के लेकिन ये खयाल हो उठता है,
उनका छोड के जाना, बुरा सपना तो नही
दस्त्खो पै आजकल मै ध्यान देता नही, 
कइ बार दौडा दरवाजे, कोइ रहता ही नही
शायद रह-रह के कान बज उठते है मेरे, 
ये सोच दौडता हु, कही कोइ अपना तो नही 
अलग-अलग ही रहता हु, मै जरा भीड से, 
उसके बिना भीड मे, हसने का मजा ही नही
बहुत हसता था मै जमाने भर के दीवानो पै, 
बदले मे कही ये उस बात की सजा तो नही .........................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

Wednesday 3 July 2013

अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई,

















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई,
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई.
आप मत पूछिये क्या हम पे सफर में गुजरी,
थे लुटेरों का जहां गाव, वहीं रात हुई.
ज़िंदगी भर तो हुई गुफ्तगू गैरों से मगर,
आज तक हमसे हमारी ना मुलाकात हुई.
हर गलत मोड पे टोका है किसी ने मुझको,
एक आवाज़ तेरी जब से मेरे साथ हुई.
मैने सोचा की मेरे देश की हालत क्या है,
एक कातिल से तभी मेरी मुलाकात हुई......................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::